Thursday, April 30, 2015

अकाल तख्त साहिब



श्री गुरु अर्जुनदेव जी की शहादत के बाद सिखों को जगह-जगह हुक्मनामे लिखे गए कि श्री गुरु अर्जुनदेव जी ज्योति जोत समा गए हैं और श्री हरगोबिन्द राय जी गद्दी पर विराजमान हुए हैं। संगत आकर दर्षन करे। यह भी लिखा गया कि जो कोई अच्छा घोड़ा, अच्छा शस्त्र लाएगा उस पर गुरुजी की बहुत खुशी होगी। इस मजमून के हुक्मनामे दिल्ली, आगरा, मकसूदाबाद, पटना, 
काषी, फरूखाबाद, काबुल, कंधार, पेषावर, कष्मीर, तिब्बत, उज्जैन आदि जगह भेजे गए और आषाढ़ सुदी १० की तिथि को अमृतसर पधारने के लिए लिखा गया। गुरु हरगोबिन्द जी ने संगतों के ठहरने की व्यवस्था की। लंगर की व्यवस्था, घोड़ों के लिए तबेले, घोड़ों के साज, काठी, लगाम तथा शस्त्रों के निर्माण की भी व्यवस्था की गई। शस्त्र निर्माण के लिए राजस्थान से कुषल कारीगर मंगाए गए और यह भी फरमाया कि उनको नौकरी पर रख लिया जाए। संगत देष के कोने कोने से भारी संख्या में पहुंचने लगी। सरोवर साहिब के चारों ओर डेरे लगने लगे। संगत पवित्र अमृतसर सरोवर में स्नान कर व हरि मंदिर साहिब में कीर्तन 
श्रवण कर निहाल हुई। संगत श्री गुरु हरगोबिन्द जी के दर्षन कर धन्यता का अनुभव करने लगी। श्री गुरु हरगोबिन्द जी ने गहन मंथन के बाद यह विचार किया कि हरिमंदिर साहिब में पोथी साहिब विराजमान है और वहां गुरु का कीर्तन होता है। इसीलिए अन्य कार्यक्षेत्रों के लिए, दुनियावी मसलों के लिए व राजनीतिक जागृति के लिए अलग स्थान की आवष्यकता है। श्री गुरु हरगोबिन्द जी ने हरमन्दिर साहिब के सामने की दर्षनीड्योढ़ी के आगे का स्थान चयनित किया। श्री गुरु हरगोबिन्द जी स्वयं अपने हाथों से ईंटे ढ़ोकर लाए। भाई गुरदास जी गारा बनाकर लाते थे। भाई बुड्ढ़ा जी ईंटे चुन रहे थे। इस प्रकार जुगो जुग अटल अकाल तख्त साहिब एक थड़े के रूप में अस्तित्व में आया। श्री गुरु हरगोबिन्द जी सौष्ठव के प्रतीक थे और उनके द्वारा मजबूत ईंटों की आपूर्ति की जा रही थी। भाई गुरदास जी ज्ञान और अध्ययन के प्रतीक थे, और उनके द्वारा गारे की आपूर्ति। 
सत् श्री अकाल 


ताती वाओ न लागई


Friday, April 10, 2015

गुरू अरजन देव जी



     श्री गुरू अरजन देव जी 

गुरू जी का जन्म(प्रकाश) सन् 1534 में चूना मण्डी 
लाहौर,पाकिस्तान में हुआ था
उनकी माता जी का नामः माता दया जी और पिता जी का नामः हरिदास जी था उनका 
विवाह सन 1554 में बीबी भानी जी से हुआ था

गुरू रामदास जी गुरू अमरदास जी के दामाद थे। 
उनकी सन्तान 3 बेटे थे 
पृथ्वीचन्द,महादेव और अरजन देव जी
गुरू अरजन देव जी ने अमृतसर नगर बसाया 

श्री गुरू रामदास जी चौथे गुरू और पाँचवें गुरू श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के पिता जी थे।
गुरू साहिब को गुरूआई सन् 1574 में मिली
श्री अमृतसर साहिब जी का पहले नाम गुरू चक्क रखा गया था
उनके समकालीन बादशाह अकबर थे
गुरू रामदास जी का पुराना नामः भाई जेठा जी था
गुरू साहिब सन् 1581 ईस्वी में श्री गोइंदवाल साहिब में जोति जोत समाये