Sunday, September 2, 2012
Thursday, May 31, 2012
गुरु नानक देव जी
लगभग ५०० साल पहले सिखो के प्रथम गुरु श्री नानकदेव का जनम कार्तिक सुदी पूर्णिमा सम्वत १५२६ ,२० अक्टूबर सन् १४६९ को ननकाना साहब ,तलवंडी गांव जिला शेखुपुरा में कालू मेहता और तृप्ता देवी के घर हुआ था ,कालू मेहता जी पटवारी थे ,जब पंडित को बुला कर इनका नाम रखने को कहा तो वो इन्हें देख कर अचरज में पड़ गया क्योकि दाई ने कहा की बालक ने हस्ते हुए जनम लिया है ,पंडित ने कहा वो १३ दिन बाद आ कर नाम रखेगा और चला गया
१३ दिन बाद पंडित ने आ कर बालक को देखा और कहा की ये बालक या तो कोई सम्राट या महा पुरुष बनेगा और कुंडली के अनुसार नाम नानक रख दिया ,ये नाम हिंदू और मुसलमानों का मिला जुला नाम है ,और कहा की सब इसका कहा मानकर चलेंगे ,ये बालक सब का उद्धार करेगा
१३ दिन बाद पंडित ने आ कर बालक को देखा और कहा की ये बालक या तो कोई सम्राट या महा पुरुष बनेगा और कुंडली के अनुसार नाम नानक रख दिया ,ये नाम हिंदू और मुसलमानों का मिला जुला नाम है ,और कहा की सब इसका कहा मानकर चलेंगे ,ये बालक सब का उद्धार करेगा
Friday, May 18, 2012
मक्का और गुरु नानक देव जी
श्री गुरु नानक देव जी मक्का जा रहे थे और उनके साथ कुछ कटर मुसलमान भी थे ।जब वो मक्का पहुंचे पवित्र काबा को देखने तो सूरज अस्त हो रहा था और सब बहुत थक चुके थे ,गुरु नानक देव जी तो वहीँ पैर लेट गए और सो गए ,उनके साथ जो यात्री आये थे वो ये देखकर बहुत हैरान हो गए ,वो तो उनको एक बहुत ही बड़ा साधू समझ रहे थे ,लेकिन उनकी हरकत देख कर उन सब को गुस्सा आ गया क्योकि वो काबा की तरफ पैर कर के सोये हुए थे ,सब किसी अनहोनी से डर गए और उसी समय काजी साहब भी आ गए और गुरु जी को देख कर उन्होंने पूछा ये आदमी कौन है क्या ये नास्तिक है या खुदा के कहर से नहीं डरता है ।
बहुत सा शोर सुन कर गुरु जी की आँख खुल गयी और उन्होंने हैरानी से पूछा क्या हुआ है ,तब सब ने एक ही स्वर में उत्तेर दिया की तुम काबा की तरफ पैर करके सो रहे हो जो की ठीक नहीं है ,ये सुन कर गुरु जी जोर से हस पड़े और कहा तुम मेरे पैर किसी भी ऐसी जगह की तरफ कर दो जहाँ खुदा या भगवान् नहीं है ,वो लोग जिधर भी गुरु जी के पैर करते काबा उधर ही नज़र आ जाता ,सब थक गए और समझ भी गए उनकी बात खुदा या भगवान् तो हर जगह है ,कण कण में है ,जो काजी इतना गुस्सा हो रहा था गुरु जी की बात समझ गया ।
भगवान् तो हर जगह है बस एक बार तुम उसे पा लो फिर वो तुम्हे हर जगह हर वास्तु में नज़र आएगा
सतनाम श्री वाहेगुरु जी
बहुत सा शोर सुन कर गुरु जी की आँख खुल गयी और उन्होंने हैरानी से पूछा क्या हुआ है ,तब सब ने एक ही स्वर में उत्तेर दिया की तुम काबा की तरफ पैर करके सो रहे हो जो की ठीक नहीं है ,ये सुन कर गुरु जी जोर से हस पड़े और कहा तुम मेरे पैर किसी भी ऐसी जगह की तरफ कर दो जहाँ खुदा या भगवान् नहीं है ,वो लोग जिधर भी गुरु जी के पैर करते काबा उधर ही नज़र आ जाता ,सब थक गए और समझ भी गए उनकी बात खुदा या भगवान् तो हर जगह है ,कण कण में है ,जो काजी इतना गुस्सा हो रहा था गुरु जी की बात समझ गया ।
भगवान् तो हर जगह है बस एक बार तुम उसे पा लो फिर वो तुम्हे हर जगह हर वास्तु में नज़र आएगा
सतनाम श्री वाहेगुरु जी
Tuesday, May 15, 2012
सच्चा सौदा ......पहला लंगर
ये एक सच्ची कहानी है ...सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी जिनका जन्म मेहता कालू के घर हुआ था ,मेहता कालू जी एक व्यापारी थे और हर पिता की तरह अपने बेटे से भी व्यापार की ही उम्मीद रखते थे ,जब गुरु नानक साहिब जी 18 साल के हुए तो उनके पिता जी ने मरदाना को उनके साथ भेजा व्यापार के लिए और 20 रुपये दिए और कहा की फायदे का सौदा करना ,और अगर तुमने अच्छा और फायदे का सौदा किया तो अगली बार मै और ज्यादा रुपये दूंगा
अब गुरु नानक जी और मरदाना दोनों तलवंडी गांव से निकल पड़े ,अभी वो 10 या 12 मील की दूरी पर ही गए होंगे की उन्हें एक ऐसा गांव नज़र आया जिसमे बीमारी फैली हुई थी और वहां के लोग भूखे प्यासे और बीमार थे ,ये सब देख कर गुरु नानक जी ने मरदाना से कहा ,...पिताजी ने हमे फायदे का सौदा करने को कहा था और किसी भूखे प्यासे को खाना खिलाना और उन्हें कपडे देना ,इससे बड़ा फायदे का सौदा और क्या होगा ,ये कह कर वो मरदाना के साथ गए और उन सब के लिए खाना कपडे ले आये ,जिन्हें उन सब पीडितो में बाँट दिया और अपनी सोच से 20 रुपये उन्होंने फायदे के सौदे में लगा दिए थे ये उनका सच्चा सौदा था .......आज लंगर भी इसी को कहते हैं .....
अब गुरु नानक जी और मरदाना दोनों तलवंडी गांव से निकल पड़े ,अभी वो 10 या 12 मील की दूरी पर ही गए होंगे की उन्हें एक ऐसा गांव नज़र आया जिसमे बीमारी फैली हुई थी और वहां के लोग भूखे प्यासे और बीमार थे ,ये सब देख कर गुरु नानक जी ने मरदाना से कहा ,...पिताजी ने हमे फायदे का सौदा करने को कहा था और किसी भूखे प्यासे को खाना खिलाना और उन्हें कपडे देना ,इससे बड़ा फायदे का सौदा और क्या होगा ,ये कह कर वो मरदाना के साथ गए और उन सब के लिए खाना कपडे ले आये ,जिन्हें उन सब पीडितो में बाँट दिया और अपनी सोच से 20 रुपये उन्होंने फायदे के सौदे में लगा दिए थे ये उनका सच्चा सौदा था .......आज लंगर भी इसी को कहते हैं .....
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