Thursday, November 27, 2014

गुरू गोबिंद सिंह परिचय

                                            गुरु गोबिंद सिंह

श्री गोबिंद राय जी के जन्म से पहले एक दिन माता नानकी जी ने स्वाभाविक श्री गुरु तेग बहादर जी  को कहा कि बेटा! आप जी के पिता ने एक बार मुझे वचन दिया था कि तेरे घर तलवार का धनी बड़ा प्रतापी शूरवीर पोत्र इश्वर का अवतार होगा| मैं उनके वचनों को याद करके प्रतीक्षा कर रही हूँ कि आपके पुत्र का मुँह मैं कब देखूँगी| बेटा जी! मेरी यह मुराद पूरी करो, जिससे मुझे सुख कि प्राप्ति हो|

अपनी माता जी के यह मीठे वचन सुनकर गुरु जी ने वचन किया कि माता जी! आप जी का मनोरथ पूरा करना अकाल पुरख के हाथ मैं है| हमें भरोसा है कि आप के घर तेज प्रतापी ब्रह्मज्ञानी पोत्र देंगे|

गुरु जी के ऐसे आशावादी वचन सुनकर माता जी बहुत प्रसन्न हुए| माता जी के मनोरथ को पूरा करने के लिए गुरु जी नित्य प्रति प्रातकाल त्रिवेणी स्नान करके अंतर्ध्यान हो कर वृति जोड़ कर बैठ जाते व पुत्र प्राप्ति के लिए अकाल पुरुष कि आराधना करते|

गुरु जी कि नित्य आराधना और याचना अकाल पुरख के दरबार में स्वीकार हो गई| उसुने हेमकुंट के महा तपस्वी दुष्ट दमन को आप जी के घर माता गुजरी जी के गर्भ में जन्म लेने कि आज्ञा की| जिसे स्वीकार करके श्री दमन (दसमेश) जी ने अपनी माता गुजरी जी के गर्भ में आकर प्रवेश किया| 


श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पोरव सुदी सप्तमी संवत 1723 विक्रमी को श्री गुरु तेग बहादर जी के घर माता गुजरी जी की पवित्र कोख के पटने शहर में हुआ|

माता नानकी जी ने अपने पौत्र के जन्म की खबर देने के लिए एक विशेष आदमी को चिट्ठी देकर अपने सुपुत्र श्री गुरु तेग बहादर जी के पास धुबरी शहर भेजा| गुरु जी ने चिट्ठी पड़कर जब राजा राम सिंह को खुशी भरी खबर सुनाई तब राजा ने अपने फौजी बाजे बजवाए| तोपों की सलामी दी तथा गरीबों को दान दिया| चिट्ठी लेकर आने वाले सिख को गुरु जी ने बहुत धन दिया उसका लोक परलोक संवार दिया|
पटने से आनंदपुर साहिब बुलाकर श्री गुरु तेग बहादर जी ने अपने सुपुत्र श्री गोबिंद राय जी को घुड़ सवारी, तीर कमान, बन्दूक चलानी आदि कई प्रकार की शिक्षा सिखलाई का प्रबंध किया| बच्चो के साथ बाहर खेलते समय मामा कृपाल जी को आपकी निगरानी के लिए नियत कर दिया| इस प्रकार श्री गुरु तेग बहादर जी के किए हुए प्रबंध के अनुसार आप शिक्षा लेते रहे|
पहला विवाह
संवत 1734 की वैसाखी के समय जब देश विदेश से सतगुरु के दर्शन करने के लिए संगत आई और लाहौर की संगत में एक सुभीखी क्षत्री जिसका नाम हरजस था उन्होंने अपनी लड़की जीतो का रिश्ता श्री (गुरु) गोबिंद राय जी के साथ कर दिया| विवाह की मर्यादा को 23 आषाढ़ संवत 1734 को पूर्ण किया| आज कल यह स्थान "गुरु का लाहौर" नाम से प्रसिद्ध है|

साहिबजादे
    चेत्र सुदी सप्तमी मंगलवार संवत 1747 को साहिबजादे श्री जुझार सिंह जी का जन्म हुआ|
    माघ महीने के पिछले पक्ष में रविवार संवत् 1753 को साहिबजादे श्री जोरावर सिंह जी का जन्म हुआ|
    बुधवार फाल्गुन महीने संवत् 1755 को साहिबजादे श्री फतह सिंह जी का जन्म हुआ|

दूसरा विवाह
संवत 1741 की वैसाखी के समय जब देश विदेश से सतगुरु के दर्शन करने के लिए संगत आई और लाहौर की संगत में एक कुमरा क्षत्री जिसका नाम दुनीचंद था उन्होंने अपनी लड़की सुन्दरी का विवाह सात बैसाख श्री (गुरु) गोबिंद राय जी के साथ कर दिया|

साहिबज़ादे

23 माघ संवत 1743 को साहिबजादे श्री अजीत सिंह जी का जन्म पाऊँटा साहिब में हुआ|

गुरु अंगद देव जी का परिचय

गुरु अंगद देव जी

श्री गुरु अंगद देव जी का जनम वैसाख सुदी 1,संवत १५६१,३१ मार्च ,सन १५०४ में मत्ते दी सराए ,मुक्तसर ,जिला फिरोजपुर में पिता फेरुमल और माता दया कौर जी के घर हुआ था 1 उनकी पत्नी का नाम बीबी खीन्वी जी था I उनके दो पुत्र दासु जी और दातु जी तथा दो पुत्रियाँ बीबी अमरो ,बीबी अनोखी जी थे

गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी *पंजाबी * का चलन प्रारम्भ किया ,ये १३ वर्षो तक गुरुपद पर आसीन रहे ,गुरु जी छुआछूत के विरोधी थे ,इन्होने लंगर का प्रचार किया

ये सिखों के दुसरे गुरु थे ,इनका पहला नाम लहना जी था ,ये गुरु सेवा में ही प्रसन्न रहते थे ,गुरु नानक देव जी ने इन्हें अपने गले लगाया और अंगद नाम दिया तथा गुरुगद्दी सौंपी

मुग़ल सम्राट बाबर के भारत पर दुसरे हमले के समय गाँव मत्ते दी सराय नष्ट हो गया इसलिए ये अपने पिता जी के साथ खदूर गाँव आ गए ,यहीं इनका विवाह भी हुआ और ये दूकान चलाने लगे ,ये माता के भक्त थे ,हर वर्ष अपने साथियों के साथ वैष्णव देवी के दर्शनों को जाते थे ,खदूर में एक सिहक गुरु भाई रहते थे जिनका नाम जोधा था ,उनसे गुरु नानक देव जी की महिमा सुन कर ये वहां गए ,गुरु नानक देव जी ने इन्हें पूछा की आप कहाँ से आय हैं और कहाँ जा रहे हैं ,तो लहना जी ने बता दिया की वैष्णव देवी के दर्शनों को जा रहे हैं और आप का नाम सुनकर आप के दर्शन को चला आया कृपया करके मुझे उपदेश दीजिये ,तो गुरु जी ने कहा भाई लहना जी ,तुझे प्रभु का वरदान है की तू लेगा और हम दे देंगे , तब लहना जी ने हाथ जोड़ कर कहा की मेरा जीवन सार्थक कीजिये ,गुरु जी ने कहा की जाओ और अकाल पुरुख की भक्ति करो ,सब उसी के बनाय हुए हैं ,उनकी बात सुनकर लहना जी ने साथियों से कहा की आप देवी के दर्शनों को जाओ मैं यहीं रहूँगा ,इस तरह उनके साथी चले गए ,ये भी कुछ समय बाद अपनी दूकान को लौट आये लेकिन इनका मन गुरु चरणों में ही लगा रहता था