Thursday, November 27, 2014

गुरु अंगद देव जी का परिचय

गुरु अंगद देव जी

श्री गुरु अंगद देव जी का जनम वैसाख सुदी 1,संवत १५६१,३१ मार्च ,सन १५०४ में मत्ते दी सराए ,मुक्तसर ,जिला फिरोजपुर में पिता फेरुमल और माता दया कौर जी के घर हुआ था 1 उनकी पत्नी का नाम बीबी खीन्वी जी था I उनके दो पुत्र दासु जी और दातु जी तथा दो पुत्रियाँ बीबी अमरो ,बीबी अनोखी जी थे

गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी *पंजाबी * का चलन प्रारम्भ किया ,ये १३ वर्षो तक गुरुपद पर आसीन रहे ,गुरु जी छुआछूत के विरोधी थे ,इन्होने लंगर का प्रचार किया

ये सिखों के दुसरे गुरु थे ,इनका पहला नाम लहना जी था ,ये गुरु सेवा में ही प्रसन्न रहते थे ,गुरु नानक देव जी ने इन्हें अपने गले लगाया और अंगद नाम दिया तथा गुरुगद्दी सौंपी

मुग़ल सम्राट बाबर के भारत पर दुसरे हमले के समय गाँव मत्ते दी सराय नष्ट हो गया इसलिए ये अपने पिता जी के साथ खदूर गाँव आ गए ,यहीं इनका विवाह भी हुआ और ये दूकान चलाने लगे ,ये माता के भक्त थे ,हर वर्ष अपने साथियों के साथ वैष्णव देवी के दर्शनों को जाते थे ,खदूर में एक सिहक गुरु भाई रहते थे जिनका नाम जोधा था ,उनसे गुरु नानक देव जी की महिमा सुन कर ये वहां गए ,गुरु नानक देव जी ने इन्हें पूछा की आप कहाँ से आय हैं और कहाँ जा रहे हैं ,तो लहना जी ने बता दिया की वैष्णव देवी के दर्शनों को जा रहे हैं और आप का नाम सुनकर आप के दर्शन को चला आया कृपया करके मुझे उपदेश दीजिये ,तो गुरु जी ने कहा भाई लहना जी ,तुझे प्रभु का वरदान है की तू लेगा और हम दे देंगे , तब लहना जी ने हाथ जोड़ कर कहा की मेरा जीवन सार्थक कीजिये ,गुरु जी ने कहा की जाओ और अकाल पुरुख की भक्ति करो ,सब उसी के बनाय हुए हैं ,उनकी बात सुनकर लहना जी ने साथियों से कहा की आप देवी के दर्शनों को जाओ मैं यहीं रहूँगा ,इस तरह उनके साथी चले गए ,ये भी कुछ समय बाद अपनी दूकान को लौट आये लेकिन इनका मन गुरु चरणों में ही लगा रहता था

1 comment:

  1. गुरु अंगद देव जी के बारे में जानना अच्छा लगा ... गुरुमुखी और लंगर की शुरुआत इन्ही ने की थी ये जान कर गुरुओं की दूरदृष्टि का पता चलता है ....

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